विकास का पहिया अब ग्रामीण इलाकों से होकर गुजरेगा, क्योंकि इस बार के बजट में सरकार ने ग्रामीण रोजगार स्कीम के तहत 39,000 करोड रुपये की घोषणा की है। इसका मतलब यह हुआ कि राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना, भारत निर्माण, इंदिरा आवास आदि जैसी योजनाओं पर सरकार के खर्च में काफी बढोतरी होगी। ऐसी स्थिति में रूरल मैनेजमेंट से जुडे पेशेवरों की डिमांड में काफी इजाफा होने की उम्मीद है।
क्वालिफिकेशन ऐंड कोर्स
अधिकतर मैनेजमेंट इंस्टीटयूट्स रूरल मैनेजमेंट में पीजी डिप्लोमा या एमबीए कोर्स ऑफर करती हैं। इस कोर्स में एंट्री के लिए किसी भी मान्यता प्राप्त यूनिवर्सिटी से स्नातक होना जरूरी है।
एडमिशन प्रॉसेस
आमतौर पर इसके लिए संबंधित संस्थान प्रवेश परीक्षा लेता है। एंट्रेस एग्जाम के बाद ग्रुप डिस्कशन और पर्सनल इंटरव्यू के दौर से गुजरना पडता है। जानते हैं कुछ इंस्टीटयूट में कैसे होता है एडमिशन..
इंस्टीटयूट ऑफ रूरल मैनेजमेंट, आनंद : रूरल मैनेजमेंट में दो वर्षीय पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स में एडमिशन के लिए लिखित परीक्षा में बैठना होगा। इसमें चार सेक्शन होते हैं- इंग्लिश कॉम्प्रिहेन्शन, क्वांटिटेटिव एबिलिटी, रीजनिंग और एनालिटिकल स्किल।
जेवियर इंस्टीटयूट ऑफ मैनेजमेंट, भुवनेश्वर : रूरल मैनेजमेंट के पोस्ट ग्रेजुएट प्रोग्राम में एंट्री के लिए आईआरएमए/एक्सएटी टेस्ट स्कोर, जीडी और इंटरव्यू के आधार पर होती है। स्नातक की डिग्री रखने वाले स्टूडेंट्स इस टेस्ट में हिस्सा ले सकते हैं।
इंडियन इंस्टीटयूट ऑफ रूरल मैनेजमेंट, जयपुर : इस इंस्टीटयूट में एडमिशन के लिए मैट, एक्सएटी आदि स्कोर जरूरी है। स्टूडेंट्स का फाइनल सेलेक्शन ऊपर दिए गए स्कोर के अलावा जीडी, पर्सनल इंटरव्यू और एकेडमिक रिकॉर्ड के आधार पर होता है।
क्यों लें इस कोर्स में एडमिशन?
आज देश की गरीबी को खत्म करना सरकार की प्राथमिकता में शामिल है। यही वजह है कि ग्रामीण इलाकों के विकास के लिए मिनिस्ट्री ऑफ रूरल डेवलपमेंट ने कई योजनाओं की शुरुआत की हैं, जैसे-राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना, भारत निर्माण, इंदिरा आवास, ग्रामीण सडक योजना आदि। ये तो हुई योजनाओं की बात। यदि प्लेसमेंट की बात करें, तो मंदी के बावजूद भी रूरल मैनेजमेंट में पेशेवरों की मांग बढी हैं। जेवियर इंस्टीटयूट ऑफ मैनेजमेंट, भुवनेश्वर के रूरल मैनेजमेंट के 59 स्टूडेंट्स का प्लेसमेंट अमूल, टाटा टेलीसर्विस, मदर डेयरी आदि जैसी कंपनियों में हुई है। इसमें सबसे ज्यादा वार्षिक सैलरी पैकेज 8 लाख रुपये का रहा है। इसी तरह कुछ अन्य रूरल मैनेजमेंट इंस्टीटयूट्स में भी अच्छी प्लेसमेंट देखी गई हैं। इस क्षेत्र में मौजूद संभावनाओं को देखते हुए एडमिशन लेना करियर की दृष्टि से बेहतर माना जा सकता है।
जॉब प्रोफाइल
रूरल मैनेजर का काम ग्रामीण इलाकों में रहने वालों के विकास में सहायता करना होता है, ताकि देश का भी समग्र विकास हो सके। आज पूरी दुनिया में रूरल डेवलपमेंट पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है और विकास के लिए कई सारी स्कीम की शुरुआत हो रही है। इन योजनाओं में राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय, एनजीओ और स्थानीय निकाय भी शामिल होते हैं। रूरल मैनेजमेंट से जुडे पेशेवर का काम रूरल एरिया में कंपनी की तरक्की और लाभ के ग्राफ को ऊपर ले जाने का भी होता है। साथ ही, फर्म के प्रबंधन, रखरखाव आदि भी इन्हीं के जिम्मे होता है। यदि आपका प्लेसमेंट किसी रूरल कंसल्टेंसी कंपनी में हुआ है, तो प्लानिंग, बजट, मार्केट, निरीक्षण, यहां तक कि एम्प्लॉइज को बहाल करने का कार्य भी करना पड सकता है।
आ अब लौट चलें..
पहले लोग नौकरी की तलाश के लिए गांवों से शहरों की ओर पलायन करते थे, लेकिन अब स्थिति बदलती हुई नजर आ रही हैं, क्योंकि ग्रामीण इलाकों में विकास के कार्यो को देखते हुए लोग अब कहने लगे हैं आ अब लौट चलें..। यदि आपके पास रूरल मैनेजमेंट की डिग्री है, तो आपके लिए नौकरी की कमी नहीं है। आप एनजीओ, गवर्नमेंट डेवलपमेंट एजेंसी, को-ऑपरेटिव बैंक, इंश्योरेंस कंपनी, रिटेल कंपनी (फ्यूचर ग्रुप, रिलायंस, गोदरेज एग्रोवेट, भारती, आरपीजी) मल्टीनेशनल कंपनी या रूरल कंसल्टेंसी (आईटीसी ई-चौपाल, एससीएस ग्रुप, ग्रोसमैन ऐंड असोसिएट्स) और रिसर्च एजेंसी भी ज्वाइन कर सकते हैं। कुछ एनजीओ, जो रूरल मैनेजमेंट ग्रेजुएट्स को हायर करते हैं- ऐक्शन फॉर रूरल डेवलॅपमेंट, असोसिएशन फॉर वॉलन्टरी एजेंसीज फॉर रूरल डेवलपमेंट, आगा खान रूरल सपोर्ट प्रोग्राम, बीएआईएफ, चिराग, डेवलपमेंट अल्टरनेटिव्स ऐंड इकोटेक सर्विस, इंटरनेशनल एनजीओ, गवर्नमेंट डेवलपमेंट एजेंसीज जैसे-डीआरडीए और एसआईआरडी, एकेडमिक ऐंड रिसर्च इंस्टीटयूट आदि में नौकरी की तलाश कर सकते हैं।
मनी टॉक
देश के टॉप मैनेजमेंट इंस्टीटयूट के स्टूडेंट्स की सैलरी उनके बैकग्राउंड पर भी निर्भर करती है। आमतौर पर रूरल मैनेजमेंट स्टूडेंट्स को शुरुआती दौर में चार से पांच लाख रुपये का सालाना सैलॅरी पैकेज मिल जाता है।
इंस्टीट्यूट वॉच
इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली
एमिटी स्कूल ऑफ रूरल मैनेजमेंट, नोएडा
नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ मैनेजमेंट टेक्नोलॉजी, गाजियाबाद, यूपी,
इंस्टीटयूट ऑफ रूरल मैनेजमेंट, आनंद, गुजरात
www. irma.ac.in
रूरल रिसर्च फाउंडेशन,जयपुर, राजस्थान
इंडियन इंस्टीटयूट ऑफ मैनेजमेंट, कोलकाता,
नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ रूरल डेवलपमेंट, हैदराबाद ,
जेवियर इंस्टीटयूट ऑफ सोशल सर्विस, रांची, झारखंड,
जेवियर इंस्टीटयूट ऑफ मैनेजमेंट, भुवनेश्वर
केआईआईटी स्कूल ऑफ रूरल मैनेजमेंट, भुवनेश्वर, उडीसा
अमित निधि
विकास की बयार
रूलर एरिया में करियर की क्या संभावनाएं हैं, इस पर हमने बात की एमिटी स्कूल ऑफ रूरल मैनेजमेंट के डायरेक्टर डॉ.पी.सी. सभरवाल से..
रूरल मैनेजमेंट क्यों जरूरी है?
भारत का 70 प्रतिशत एरिया रूरल के अंतर्गत आता है और हमारी इकोनॉमी भी कृषि आधारित है। ऐसे में रूरल मैनेजमेंट के तहत ग्रामीण इलाकों में विकास के कार्य को गति देना होता है, ताकि लोगों का पलायन ग्रामीण इलाकों से रुक सके। यही कारण है कि अर्बन एरिया में विकास कार्यो के बाद अब रूरल एरिया पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है।
यह कोर्स कितना पॉपुलर है?
इस कोर्स के प्रति स्टूडेंट्स को अधिक जानकारी नहीं है, लेकिन इस वर्ष के प्लेसमेंट रिकार्ड को देखें, तो रूरल मैनेजमेंट कोर्स में काफी संभावनाएं हैं। सरकार की योजनाओं से इस क्षेत्र की महत्ता और बढ गई है। आने वाले दिनों में यह हॉट कोर्स होगा।
सरकार ने बजट में रूरल डेवलपमेंट पर अधिक ध्यान दिया है। क्या इससे रोजगार में इजाफा होगा?
बिल्कुल, आज भारत ही नहीं, बल्कि अन्य देशों का फोकस ग्रामीण इलाकों पर अधिक है। इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि आने वाले वर्षो में ग्रामीण विकास से ही देश की अर्थव्यवस्था का पहिया घूमेगा। कॉर्पाेरेट जगत, विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय संस्था आदि अब ग्रामीण विकास की राह पर अग्रसर हैं। जहां तक सरकार की बात है, तो इनकी कई स्कीम हैं, जिससे रोजगार की संभावनाएं इस क्षेत्र में दिन-ब-दिन बढेंगी ही। इससे अलावा, कृषि विकास, कृषि उपकरण, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है। मेरा मानना है कि रूरल इकोनॉमी मजबूत होगी, तो देश भी तरक्की करेगा।
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